Pulwama Attack
वोह जो पुलवामा का मंजर था लेकर आया बेहद दर्द अपने अंदर था रोके न रुके आँसुओं का बहता एक समंदर था कई कहानियाँ अधूरी सी रह गई घर वापस लौटने में देरी सी रह गई कई परिवारों का सूरज डूब गया कुछ रिश्तों का चाँद बादलों में छिप गया कुछ जवानी आधी कुछ पूरी हो गई ज़िंदगी देश के नाम लिखनी ज़रूरी हो गई जो वायदा मिट्टी से किया, वोह तोड़ा नही जो वायदा उसने चिट्ठी में किया, उसे तोड़ा वहीं घर की चौखट, जिनकी आहट से महरूम हो गई उन ही जिंदगियों की कहानी न्यूज़रूम हो गई दिन बीते और उनकी शहादत गुम हो गई हम दो पल रोए उनके लिए,फिर ज़िंदगी हमारी मसरूफ़ हो गई । ...(तुषारकुमार)