दो - चार पंक्तियाँ

1. आज बातों-बातों में तेरे शहर का ज़िक्र आया
    आज फिर मेरे ज़हन में तेरा फ़िक्र आया I

                                    
          ~(तुषारकुमार)~




2. ज़रूरी नही कि काली स्याही हमेशा काले शब्द ही लिखे
       कभी-कभी यह खून से गहरा रंग भी लिखती है ।


                 ~(तुषारकुमार)~ 





3. जब सफ़ेद कोरे काग़ज़ पर, 
    हिंदी की काली स्याही बिखेरी, 
    शब्द मेरे सुनहरे हो गए ।

         ~(तुषारकुमार)~



4. दरसल कहानी कुछ और थी
    उसके किरदार कुछ और थे
    इसलिए न कहानी चली न किरदार चले ।


          ~(तुषारकुमार)~




5. जो टूट गया वोह पीछे छूट गया और
    जो टूट के फिर जुड़ गया वोह आगे बढ़ गया ।


               ~(तुषारकुमार)~ 




6. दर्द ने दर्द इतना दिया कि अब उस दर्द से दर्द कैसा,
    अब उस दर्द को दर्द इतना दो कि उस दर्द को
    दर्द का एहसास हो मेरे दर्द जैसा । 


              ~(तुषारकुमार)~ 




7.आँखिया मुँदु तो तोहे देखूँ
   आँखिया खोलूँ तो देखूँ जग 

   जग के बंधन में बँध जाऊँ तो छूटे तू
   तेरे लिए तो चाहे छोड़ दूँ जग ।


         ~(तुषारकुमार)~





8. इस व्यस्त शहर के ऊँची इमारतों के बेजान घरो में
    अक्सर कमज़ोर आवाज़ें दबा दी जाती है ।

             ~(तुषारकुमार)~





9. तूने आँखो पर दस्तक देकर दिल में दस्तखत किये,
    हम क्या बताये ?
    तेरी शोख़ियों ने हम पर ज़ुल्म किस हद तक किये ।


             
             ~(तुषारकुमार)~





10.  यह तेरे अजब से फ़ैसलों से हमारे बीच ग़ज़ब के फ़ासले  है,
       क्यों यह दूरियाँ अब दरिया से भी गहरी हो गई है  



                         ~(तुषारकुमार)~



11.  सूती धागे सा था अपना यह रिश्ता,
       न जाने कब रेशम बन गया ।


              ~(तुषारकुमार)~



12.   जो टूट गया वोह पीछे छूट गया
        जो टूट के फिर जुड़ गया वोह आगे बड़ गया


              ~(तुषारकुमार)~




13. और जब समय आया कि वह पिता के जूतों में अपने पैर डाले ,
      तब उस बेटे ने अपने घुटने टेक दिये   

            
                 ~(तुषारकुमार)~  





14.   यह जो आधा पानी का गिलास तुम देख रहे हो
        यह हमारी ज़िंदगी भी कुछ ऐसी ही है,
        आधी जी ली और आधी जीनी बाँकी है ।


                 ~(तुषारकुमार)~





15.  फैला था जो बाहर  अँधेरा, उसे दीप जलाकर रौशन किया ।
       फैला है जो भीतर अँधेरा उसके लिए न कोई प्रयत्न किया ?



                       ~(तुषारकुमार)~



16.  यह जो मेरे शहर में सुबह से लेकर शाम तक इतनी
       प्रेम कहानियाँ घूम रही है ।
       क्या यह सभी अपनी मंज़िल तक पहुँचेगी ?



                     ~(तुषारकुमार)~



 17. ऐसा लगता है कि ख़ुशबुओं के बादल से निकलकर आए हो तुम
       तभी महका महका सा आज सारा समाँ लगता है । 


                       ~(तुषारकुमार)~



18.  कुछ ऐसा लिखूँ कि लगे की क्या खूब लिखा है
       लिख तो दूँ मैं अपना हाल-ए-बयान
       लेकिन यह तुम तक पहुँचे तो पहुँचे कैसे ?



                       ~(तुषारकुमार)~





19.रूह के बंधन में जिस्म की क्या ख्वाहिश
     जो जिस्म की ख्वाहिश हो तो
     फिर इश्क़ की क्या ख्वाहिश
     जो हो इश्क़ की ख्वाहिश,
     फिर किसी और चीज़ कि क्या ख्वाहिश



            ~(तुषारकुमार)~


20, मैं सादे काग़ज़ सा
      तु एक स्याही सी
      आ दोनो एक नई कहानी लिखे 


          ~(तुषारकुमार)~
 

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