4 गज़ माटी
आज एक बेज़ुबान जानवर से ज़ुबान वाले जानवर ने खेल किया भूख का लालच देकर उस जीव को , प्यार के नाम पर छल लिया आज दिया लालच फल का , डुबोया सूरज कल का बारूद के इस खेल में जान गई दो की , एक बाहर मरा तो दूजे ने दुनिया देखी भीतर की पेट की आग बुझी नही , लेकिन मुँह में धुआँ उठ गया एक विशाल गज आज बेवजह , 4 गज़ माटी में ढक गया सिर्फ़ शरीर ही मरा नही , विश्वास भी बारूद में उड़ गया । आज एक बेज़ुबान जानवर से ........ ~( तुषारकुमार )~