कान्हाई
मोर पंख सिर पर साजे, मन में शीतल चाँ दनी विराजे।
गोकुल का वो राजकुमार, लेकिन माखन चो र नाम से चर्चे हर एक गलीं में बाजे।
कर इकट्ठे छोटे-छोटे ग्वाले, बाँसु री होंठ से लगाकर मधुर धुन सूनावे।
गोपियों संग करे अठखेलियाँ, लीला एँ उसकी सारी अधभूत पहेलियाँ।
कभी गोवर्धन अपनी कनिष्ठा पर उठायें, कभी पूतना को मार भगायें।
समझा था कंस ने जिसे नन्हा सा ग्वाल,वो ह तो
निकला मथुरा नरेश कंस का काल।
युद्ध भूमि में जब अर्जुन के सामने उलझा धर्म युद्ध का जाल, शस्त्र त्याग अपनो के सामने अर्जुन ने मानी थी हार।
कृष्ण ने पकड़ी अर्जुन की बाँह और दिया उसका होंसला सम्भाल,
तब कृष्ण ने उजागर किया गीता के हर पृष् ठ का सार।
मीरा रोई उसकी याद में, राधा खोई उस की राग में, द्रौपदी की उसने लाज बचा, गौकल, मथुरा कीआन बचाई, ऐसा है अप ना कान्हाई।
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