कान्हाई










रंग रात्री उसकाहृदय मोती जैसाआँखे चमके तारो  सीतेज़ चेहरे का          
जैसे सूर्य नभ में हो दमका,
मोर पंख सिर पर साजेमन में शीतल चाँदनी विराजे

गोकुल का वो राजकुमारलेकिन माखन चोर नाम से चर्चे हर एक गलीं में बाजे
कर इकट्ठे छोटे-छोटे ग्वालेबाँसुरी होंठ से लगाकर मधुर धुन सूनावे

गोपियों संग करे अठखेलियाँ लीलाएँ उसकी सारी अधभूत पहेलियाँ
कभी गोवर्धन अपनी कनिष्ठा पर उठायें, कभी पूतना को मार भगायें

समझा था कंस ने जिसे नन्हा सा ग्वाल,वो तो 
निकला मथुरा नरेश कंस का काल

युद्ध भूमि में जब अर्जुन के सामने उलझा धर्म युद्ध का जालशस्त्र त्याग पनो के सामने अर्जुन ने मानी थी हार
कृष्ण ने पकड़ी अर्जुन की बाँह और दिया उसका होंसला सम्भाल,
तब कृष्ण ने उजागर किया गीता के हर पृष्ठ का सार


मीरा रोई उसकी याद मेंराधा खोई उसकी राग मेंद्रौपदी की उसने लाज बचागौकलमथुरा कीआन बचाईऐसा है अपना कान्हाई 

Comments

Popular posts from this blog

हाँ लब यह कुछ कह न सके ।

रंग भगवा

ज़िंदगी की सबसे बड़ी पहेली ज़िंदगी है