भगत सिंह
जिसके रगों में लहू से ज़्यादा बहता भारत था
जिसका हौंसला एक मज़बूत इमारत था
जिसके जिस्म में आज़ादी की ख़ुश्बू महकती थी
जिसके साँसो में आज़ादी की आग दहकती थी
जिसके कंधो पर सूर्य चमकता था
जिसके क़दमों से चट्टान चटकता था
जिसकी बोली में सिंह गरजता था
जिसके चेहरे पर तेज़ लहकता था
यह भगत सिंह कहलाता था, यह भगत सिंह कहलाता है, यह सिर्फ़ भगत सिंह
कहलाएगा ।
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