विश्वास..

विश्वास

न जाने कैसा विश्वास है यह ,जिसने मुझे सम्भाले रखा है ।

कमजोर यह शरीर है, लेकिन विश्वास मजबूत बना रखा है ।

विपरीत परिस्थितियों में रोता हूँ, लडखडाता हूँ ,न जाने किस जाल में उलझ जाता हूँ ।

न जाने यह विश्वास कहाँ से आता है ,
मै  गिर-गिर के उठ जाता हूँ ,एक कोशिश लड़ने की फिर करता हूँ,

न जाने कैसा विश्वास है यह ,जिसने मुझे सम्भाले रखा है ।.......

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