मैं लौट कर आऊँगा









यह जो झूठ और प्रपंच है
जिस पर सजा एक मंच है
जो झुक गया वोह टिक गया
जो न झुका, जलती अग्नि में सिक गया
लेकिन मैं आवाज़ उठाते जाऊँगा
अपने कदम बढ़ाते जाऊँगा
इन कदमों के आहटों से
तेरे सीने में जो हलचल होगी
उसे और बढ़ाते जाऊँगा
इस हलचल से तु थर थरायेगा
अपने ही जाल में खुद उलझता जाएगा
लेकिन याद रख मैं फिर लौट के आऊँगा

क्योंकि यह जो झूठ और प्रपंच है
जिस पर सजा एक मंच है
उसे भेद में गिराऊँगा, मैं लौट कर आऊँगा


~(तुषारकुमार)~

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