कुछ अलग सोच, कुछ नया सोच !
यह सोच कर मत रुक जाओं कि तुम्हारी सोच पर वोह क्या सोचेंगे?
वोह क्या सोचते है? यह सोच-सोच कर तुमने अपनी सोच को इस सोच
में इतना गिरा दिया है कि अब आप कुछ नया सोच ही नही पा रहे हो ।
नकरात्मक सोच को सकारात्मक सोच में बदल डालो।
क्योंकि...
यह एक सोच ही है जो किसी को यह सोचने में मजबूर कर देती है कि
अगर हम कुछ अलग करने की सोचे तो वोह हमारे बारे में क्या सोचेंगे?
याद रखो जितना उनके बारे में सोचोगे उतना यह सोच तुम्हें सोचने
पर मजबूर कर देगी। अपनी इस सोच पर किसी दूसरे की सोच की सोच मत आने दो ।
कुछ अलग सोच, कुछ नया सोच !
~(तुषारकुमार)~
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